करो करनादै मोहै काबो ! होवे नहीं दूर से आबो
!! श्री करणीजी महाराज को काबो !!
!! जागावत हिंगऴाजदानजी चारणवास कृत अनुपम अनूठी चिरजा रचना !!
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श्री हिंगलाजदान जी पराम्बा भगवती माँ के अनन्य भक्त थे, उस जमाने मे संचार व यातायात के साधनों व आर्थिक संसाधनों की नितान्त ही कमी थी ! आज के समय मे “श्री हिंगलाज पाकिस्तान” की यात्रा के समान ही दूरस्थ धार्मिक स्थानो की यात्रा भी दुष्कर मानी जाती थी, परन्तु फिर भी माँ भगवती राज राजेश्वरी करनी किनियांणी के दरबार मे पहुंच कर अपनी श्रध्दार्पण की शुध्द भावना भगवती के हर आम-ओ-खास भक्त की रहती ही थी, और उसमें भी भगवती के श्रीमढ में नित्य प्रति श्रीमाँ के सामिप्य को प्राप्त करने वाले काबो का आनन्दित होकर भगवती के आँचल मे अठखेलियां करते देखकर उन्ही के सौभाग्य से अपने भाग्य लेखों को सुमेलित कर माँ के श्रीचरणों का सानिध्य सामिप्य याचना करना, और साथ ही आवागमन के अतिसूक्ष्म साधनों से विहिन होने की बेबशी को सभी भक्तो की और से निवेदन, यह रचना सृजन कर सागर को गागर मे समाहित करना ही कवि जागावत साहब की लेखनी धन्य है !!
करो करनादै मोहै काबो !
होवे नहीं दूर से आबो !! टेर !!
पड छाया पडियो रहूँ,
मन रहै मूरत मांय !
फिरूं फलांगां जा पङूं,
छत्रां हंदी छांय !!
सूरत को होय सरसाबो !!1!!
केऴ करूं कदमा कने,
खा व्यंजन खठतीस !
कबु होय बैठूं खुशी,
सजना हंदे शीश !!
कहे कुण मोद को माबो !!2!!
सोश्यो समन्द अगस्त ज्यूं,
श्री आवड सुरराय !
कहूं जकाँ दरसन करू,
लोयण अधिक लुभाय !!
हुकम को होय फरमाबो !!3!!
कबुं निज मन्दिर बारणे,
कनक कपाटां खास !
जोत समय जहां जायके,
आ राखूं घण आस !!
गुणो गुण सेवगां गाबो !!4!!
सुन्दर राग सवासण्यां,
गावत अति गम्भीर !
कर जोड्यां कीरत करै,
उभा अधिक अमीर !!
चहूं ना नींद को चाऽबो !!5!!
कबुं चौक कूदूं घणुं,
दे निज पांवां धोक !
धजबन्द रो मण्ड देखतां!
सौ सुख ना सुरलोक !!
तपस्या झूठों तन ताबो !!6!!
आठम नौमी नौरतां,
रच नृत्य करत सुभात !
जुगत अखाडा जेणरी,
मैं देखू जग मात !!
यो ही हिंगलाज रो चाबौ !!7!!
करो करन्नल मोहै काबो,
होवे नहीं दूर से आबो !!
जागावत हिंगऴाजदानजी चारणवास !!