चारणों का भूमिलोक पर आगमन :-
पूर्व में हम पढ़ चुके हैं कि चारण शिवजी के साथ हिमालय पर्वत पर रहते थे और इनके नंदी को चारने का कार्य करते थे। शिवजी के श्राप के परिणामस्वरूप चारण गण का स्वर्गलोक छूट जाता हैं। पद्म पुराण में कहा गया हैं कि जब राजा पृथु ने यज्ञ किया तब उसने अन्य मेहमानों के साथ चारणों को भी यज्ञ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया और यज्ञ की समाप्ति पर देवताओं के विसर्जन के समय जब उनको भिन्न-भिन्न प्रकार की दक्षिणाएँ दी गई थी तो उस समय राजा पृथु ने चारणों को दक्षिणा में तैलंग देश दिया था।
चारणाय तत: प्रादालंग देशमुत्तमम् ।।
इस प्रकार यह अनुमान लगाया जाता हैं कि चारण जाति के जिन व्यक्तियों ने राजा पृथु की दक्षिणा स्वीकार कर ली। वे चारण हिमालय से तैलंग देश में आकर बस गये तथा जिन्होंने यज्ञ में भाग नहीं लिया था, वे महाभारत के काल तक गंधमान पर ही बसे रहे होंगे। तैलंग प्रदेश में चारणों के निवास का प्रमाण यह हैं कि वहां चारण कवि कम्बन ने तमिल भाषा में रामायण की रचना की थी। राजा पृथु के समय चारण तैलंग देश में आकर निवास करने लगे थे। समय के साथ तैलंग देश से चारण अयोध्या की तरफ आकर बस गये और समय के फेर में पड़कर कई चारणों ने जैन धर्म भी स्वीकार कर लिया होगा। क्योंकि जैन ग्रंथों में भी चारणों के लिए दिव्य देहधारी तथा गगनचारी लिखा मिलता हैं। फिर वहां से चारण पश्चिमोत्तर भारतवर्ष की ओर फैल गये थे। ये पाकिस्तान के बलुचिस्तान, सिंध व पंजाब व भारत के कच्छ व सौराष्ट्र में आकर निवास करने लगे। इस क्षेत्र में चारणों का सम्बन्ध क्षत्रियों के साथ दृढ़ हुआ, यहां तक कि राजा लोग न्याय अथवा राजनैतिक विचारों में भी चारणों को शामिल करते थे। जब क्षत्रियों पर बौद्धों का दबाव पड़ा और हर एक जाति के लोग राजा बनकर वैदिक क्षत्रियों को बौद्ध बनाने लगे। तब चारण क्षत्रियों के साथ राजपूताना, पंजाब, सिंध व गुजरात में आकर रहने लगे। इसी कारण से भारतवर्ष के अन्य भागों में चारणों का वंश नहीं रहा। उस समय चारण घोड़ो का व्यापार व पशुपालन करने लगे। आपातकाल में क्षत्रियों को घोड़े अन्नादि वस्तुओं से सहायता देते थे। परन्तु इस दशा में चारणों की सब विद्या नष्ट हो गई और बौद्ध लोगों ने चारणों द्वारा रचित प्राचीन ग्रंथों को भी नष्ट कर दिये। इसके बावजूद भी इनकी क्षत्रियों से एकता बनी रही और उनके दरबारी कवि बने रहे। चारण प्राकृत भाषा आदि में अपनी काव्य रचना श्लोकों के स्थान पर दोहों व छंदों में करने लगे और राजा लोग इनका खूब आदर-सत्कार करते थे। राजाओं ने पूज्य चारणों को लाखों रूपयों की आय वाली जागीरे, इज्जतें, बड़े-बड़े पद और करोड़ों रूपयों का द्रव्य दिया था जिसका इतिहास के ग्रंथों में जगह-जगह उल्लेख हुआ हैं।
रियासतीकाल तथा वर्तमान के लोकतंत्र में भी चारण लोग सरकारी सेवा में रहकर बड़े-बड़े प्रशासनिक कार्यों को कर रहे हैं। इस प्रकार से चारण अतीत से वर्तमान तक देवताओं, राजाओं तथा लोकतांत्रिक देश में अपने वजूद को बनाये हुए हैं। जहां प्रारम्भिक काल में इनके शिवजी, रामचन्द्रजी, कृष्ण भगवान व विष्णु भगवान आदि देवताओं के साथ सम्बंधों का विवरण पौराणिक धर्म ग्रंथों में भरा पड़ा हैं जिसके कुछ आवश्यक उद्दरण पुस्तक में बताये हैं। मध्यकाल में चारण जाति में असंख्य देवियों ने अवतार लिये है। मध्यकाल में चारण जाति में 84 महाशक्तियों ने अवतार लेकर इनके जातीय गौरव में वृद्धि की। जिनमें श्रीआवड़ माता, श्रीखोड़ियार माता, श्रीबिरवड़ माता, श्रीपीठड़ माता, श्रीसेणल माता, श्रीदेवल माता, श्रीकरनी माता, श्रीलाला-फूला माता, श्रीकेसर माता, श्रीराजल माता, श्रीचांपल माता, श्रीगीगाई माता, श्रीकामेही माता, श्रीमोगल माता, श्रीनाग बाई माता, श्रीदेवनगा माता, श्रीसुन्दर माता, श्रीबीरी माता आदि प्रमुख हैं। 20 वीं सदी में भी चारण जाति में श्रीसोनल माता, श्रीइन्द्र माता, श्रीसायर माता व श्री लूंगमाता जैसी देवियों ने अवतार लेकर इस जाति के गौरव को बनाये रखा। इन अवतारी लोक पुज्य देवियों की वर्तमान में मान्यताएँ प्राचीन देवी-देवताओं से अधिक दिखाई देती है।
यूरोपीयन विद्वानों के अनुसार चारण :-
1 कर्नल टॉड के अनुसार :- ले. कर्नल जेम्स टॉड जो पोलिटिकल एजेन्ट जोधपुर, जैसलमेर व सिरोही ने राजपूतानों की तवारीख ‘टॉड राजस्थान’ नाम की बनाकर श्रीमान् विलियम बहादुर चतुर्थ को नजर की थी। यह किताब 1832 ई. में छपी । जिसकी दूसरी जिल्द के पृ.सं. 198 व 199 में चारणों के बारे में कर्नल टॉड़ ने लिखा हैं कि
इस देश में चारण पवित्र माने जाते हैं, वीर क्षत्रिय ब्राह्मणों की कविता की बनिस्पत चारणों की कविता का ज्यादा अदब करते हैं, चारण आज तक राठौड़ों से अदब पाते आये हैं।
2 केप्टन ए.डी. वैनरमेन के अनुसार :- 1901 ई. की हिन्दुस्तान की मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट की 25 जिल्द नं. 3 में राजपूताने के बाबत पहले हिस्से में केप्टन ए.डी. वैनरमेन आई.एस.सी. सुपरिंटेडेन्ट मर्दुमशुमारी ने चारणों के बाबत पृ.सं. 147 पर यह लिखा हैं किचारण एक बहुत पुरानी व पवित्र कौम मानी जाती हैं, इनका वर्णन रामायण व महाभारत में भी हैं, वे राजपूतों के कवि हैं, वे अपनी उत्पत्ति देवताओं से होने का दावा रखते हैं। राजपूत हमेशा इनके साथ सबसे ज्यादा इज्जत से पेश आते हैं। वे बड़े विश्वासपात्र समझे जाते हैं। इनका दर्जा ऊँचा समझा जाता हैं, उन्हें अक्सर बारहठजी के नाम से पुकारा जाता हैं।
3 विल्सन द्वारा लिखित इण्डियन कास्ट :- पुस्तक की दूसरी जिल्द के पृ. सं. 181 से 185 तक
4 शेरिंग द्वारा लिखित ट्राइब्ज़ ऐण्ड़ कास्टस् ऑफ़ इण्डिया :- पुस्तक के पृ.सं. 181 से 185 तक