मन तरसे मढ जाऊं देशाणे मात मुर्त मन मोवणी

मन तरसे मढ जाऊं देशाणे मात मुर्त मन मोवणी

वरण देशाणे अमर धर वरणु करण बसे दुःख काटणी
मंदिर सुरग माय बैकुंठ में अंदर सुंदर छवि मढ छाजणी
मात मुर्त मन……

खेल सदा खुशहाली रा खेले मां चुहा संग चाहे चारणी मां
केल काबा रो कविजन वरणे, चरण शरण तुँ चावणी
मात मुर्त मन…..

खान पान मेवा नित खावे माँ, पावे दुध कम पावणी मां
भाग बड़ा बिठु बड़े भागी, डाढाली अंश धारणी मां
मात मुर्त मन….

लाख नवसंग आप लोवड़, रास नेड़ी मढ राचणी मां
छाक मद पल भाख कलेजी, मोद करें खल मारणी मां
मात मुर्त मन…..

जाण रति तव पाण में जोड़ू, मान रखाजो मावड़ी मां
कृपा भंवर पर करजे करणी,भंवर सागर दुःख भाजणी मां
मात मुर्त मन….

रचना : भंवरदान जी

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