अम्बै मैं तो करूं हूँ पुकार करीज्यू !अम्बै म्हारै आज्यो ज्यूँ वेग हरीज्यूँ !

!! मैं तो करूं हूं पुकार करीज्यूँ, अम्बे म्हांरै आज्योजी बेग हरीज्यूँ ! जवाहरदान जी रतनूं थूंसङा कृत !!
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शक्ति भक्ति साहित्य सृजक साधको की अग्रिम पंक्ति मे शामिल जवाहरदान जी रतनूं जिन्होने रामसिंहजी के नाम से ही सारी रचनायें की है, प्रस्तुत चिरजा में माँ भगवती को अरदास करतै समय सनातन धर्म के पौराणिक आख्यानौं का उदाहरण देकर निवेदन किया है कि हे, विश्ववंदनीय माँ आप उसी प्रकार मुझ अकिंचन पर किंचिंत कृपा करें, जैसे कि, ग्राह ने गज (करी) को ग्रसित किया उसकी पुकार पर श्रीहरि विष्णु अपने वाहन को छोङकर पैदल दौङै उसी तत्पर भाव से आप आयें जैसे भक्तराज प्रहलाद को हिरणाकश्यप के कोप से नृसिंह बन भगवान आये वैसे ही आप मेरी सुधि लेवें, जैसे रघुनंदन के पदरज से गौतम ऋषि की श्रापित पत्नि का उध्दार हुआ वही कृपा आप बरसाये !!

इन्द्रदेव के कुपित होकर बृजवासीयों पर बारह मघवानों की जलावृष्टी से पिङित होनै पर श्रीकृष्ण मे गिरवर को अपनी कनिष्ठिका पर धारण कर किरण्यो (छत्ता) बना कर बचा लिया और ग्वालों को भयमुक्त कर दिया उसी भांति भवानी आप मुझे अभय प्रदान करें, मैं आपकी शरणागत हूं और इस संसार मे आपकी कृपा से ही सब कारज संम्भव होते है !!

बहुत ही सुन्दर भाव व शब्द संयौजन है और ऐसी रचनाऐं बहुत कम ही देखने मे आती हैं ! नमन है ऐसे साहित्य साधक भक्त जवाहरदान जी रतनुं को !!

!! कवित !!

ब्रह्मा विष्णु रुद्र ईश
सदा शिव पंचभूत,
चिदानन्द रूप
सुखपाल के कहार है !
व्योम से वितान चन्द
भानु से मशालची है,
महा तत्व मंत्री
गुण तीन पेशकार है !
शुक्र जलधारी धनपाल
से भण्डारी त्यो ही,
कोटि सुरपाल लोक
पाल चोपदार है !
नाग यक्ष किन्नर है
पामर पायदन से,
श्री जगदम्ब तेरी
ऐसी सरकार है !!

चिरजा

अम्बै मैं तो करूं हूँ पुकार करीज्यू !
अम्बै म्हारै आज्यो ज्यूँ वेग हरीज्यूँ !

ग्राह ग्रस्यो गजराज सिन्धु में,
भारी भीर परीज्यूँ !
खग मग छोड़ि आतुर हरि आये,
पैदल पैण्ड परीज्यूँ !!1!!

सुत प्रहलाद को मारण कारण,
बण गयो बाप अरीज्यूँ !
असुर मारि निज भक्त उबार्यो,
नृसिंह रूप धरीज्यूँ !!2!!

गौतम की पत्नि पति श्राप ते,
पाहन होय परीज्यूँ !
परसैै चरण सरोज प्रिति सौ,
निर्मल देह धरीज्यूँ !!3!!

इंद्र कोप कियो बृज ऊपर,
बरस्यौ मैघ झरीज्यूँ !
गिरवर धारि कियो हरि किरण्यौ,
ग्वालन नांहि डरीज्यूँ !!4!!

माया ब्रह्म एक जग माँही,
कथना कहूँ खरीज्यूँ !
रामसिंह निज दास राजरौ,
सारा ही काम सरीज्यूँ !!5!!

जवाहरदानजी रतनूं थूंसङा अलवर !

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