जी म्हारे अन्नदाता स्यूँ आछो लागे आईदान रो बास

!! चिरजा !!

जी म्हारे अन्नदाता स्यूँ आछो लागे आईदान रो बास

                              !! अंतरा !!

भागी धरती बनेडिया री,करण सुकारज खास,
करणी रो आदेश पाकर,प्रगटी मात प्रकाश,
म्हारे बाईसा स्यूँ आछो लागे आईदान रो बास।।

खिड़िया कुल ऊजळ करण, वरण पात बिश्वास,
भगत उबारण भगवती,अर अवनी करण उजास,
म्हारे बाईसा स्यूँ——

मढ़ थिरपायो मावड़ी,करणादे रो खास,
शिव राजे भैरव सहित , इन्द्र तणो अधिवास,
म्हारे बाईसा स्यूँ आछो लागे आईदान रो बास।।

पूर्ण कला परमेश्वरी माँ पृथ्वी पर प्रकाश,
नेड़े आकर ही निरखियो,अम्ब तणो आभास,
म्हारे बाईसा स्यूँ…….

देखत बाल “विराज” रो दुख,पुग्यो अम्ब प्रकाश,
मात भंवरजा मुलक बिचाले,पलक न हो परिहास,
म्हारे बाईसा स्यूँ……

रचना- विराज सिंह शेखावत

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