अम्बा मोरी श्री हिंगलाज सुथान,भई नव-लाख भेऴीजी
!! चिरजा इन्द्रबाईसा अन्नदाता के अवतरण की पूर्व पीठिका की श्रीहिंगऴाज अखाङै में सिरोमणी शक्तियों के परिषद में !!
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भव भय भंजनी भगवती भवा भवानी के अनन्य उपासक व अन्दाता श्रीइन्द्रबाईसा के मातुल, जागावत श्रीहिंगऴाजदान जी जागावत रचित “अम्बा मोरी श्रीहिंगऴाज सुथान, भई नवलाख भैऴीजी” यह ऐक मात्र ऐसी प्राचीन चिरजा है, जिसमें माँ अम्बिका के जन्मदिवस वि.सं. १९६४ के आषाढ शुक्ला नवमी से ठीक नवमास पूर्ष वि.संवत १९६३ के आश्विन मास की नवरात्री मे सिध्दपीठ श्रीहिंगऴाज में सब शक्तियों की परिषद मे भैरव ने भक्तो के कष्टत्राण की तारणहार भगवती हिंगऴाज से निवेदन किया कि मारवाङ मंडऴ मे संक्रमण का समय आ उपस्थित हुआ है, हे माँ आप इससे अपने आराधको को अराजकता से उबारें, हे माँ आप अवलम्ब बने, भैरवी की विनती सुनकर हिंगलाज ने पराम्बा आवङ माँ को आदेशित किया कि आप मानव देह धारण कर भक्तजनो की भीर हरो, भगवती आवङजी ने स्थान आदि के बारे मे पूछा तो माँ हिंगऴाज ने निर्देशित किया कि, आप मारवाङ मंडऴ के गेढा खुरद गांव के शिवदानजी रतनूं के सुपुत्र सागरदानजी की धर्मपत्नी धापू बाई की कुक्षि से अवतार लेवें, सागरबाई करनीजी की माताजी देवलबाई के सदृष्य भक्तिमती व धर्मपरायणा दयावान है और आप के अवतार धारण करने का उपयुक्त स्थान व दम्पति है, श्रीहिंगऴाज का आदेश शिरोधार्य कर माँ आवङजी ने निर्देशित स्थान व समय पर वि.सं. १९६४ के आषाढ शुक्ला नवमी शुक्रवार स्वाति नक्षत्र मे संध्या आरती समय मे अवतार लिया, इस संदर्भ व आशय की अन्यत्तम अनुपम अनूठी चिरजा सृजन कर अनन्य भक्तजनो को उपहार दिया है !!
यह चिरजा सभी जगह मातृशक्ति सहित सभी भक्तजनों की प्रिय चिरजा रही है व राजस्थान के सभी अंचलों मे गाई जाती है, ई. सन 1993 के श्रीमढ खुङद धाम मे हुये श्री आवङ करनीन्द्र महायज्ञ के पावन अवसर पर देवलों के बीरम जी आवङजी गांव चारणवास ने इसे मंच पर राग माढ मे गाकर उपस्थित श्रौताजनो को आनन्द से विभोर कर दिया था !!
!! दोहा !!
समत गुनी त्रैसट्यां,
सांणिक पुर समान !
शुकल पक्ष आसोज में,
श्री हिंगऴाज सुथान !!
!! चिरजा !!
अम्बा मोरी श्री हिंगलाज सुथान,
भई नव-लाख भेऴीजी !! टेर !!
कुमख्या, धमला, कौशिकी,
गिरि-रमणी गीगाय !
बिरवड, आवड, बैचरा,
सब आई सुरराय !
भई नवलाख भेऴीजी !!1!!
राजल करणी हर्ष-हियै,
चन्दू अरु चामुण्ड !
सिन्धु सुतादिक ईश्वरी,
जुडी अखाडै झुण्ड !!
भई नव-लाख भैऴीजी !!2!!
उमगि पधारि दिवस उण,
जग जेती जगदम्ब !
नयण गुलाबी करि नसो,
आदिश्वरि मय अम्ब !!
भई नवलाख भैऴीजी !!3!!
कर जोडि र भैरव कही,
बीस-हथी सुणो बैन !
पात प्रबल दुख पा रहे,
दुष्ट लगे दुख देन !!
भई नवलाख भैऴीजी !!4!!
भैरव की सुन बीनती,
हुकुम दियो हिंगलाज ।
”आवड़ जावहु अवनि पे,
करन सु सेवक काज” !
भई नवलाख भैऴीजी !!5!!
आवड़ इमि मुख आखियो,
”गवन करूं किन गेह” !
“कहो जेम तुम मैं करूं”,
“धरहूं मानुष देह” !!
भई नवलाख भेऴीजी !!6!!
गौड़ाटी गेढ़ो-खुड़द,
मुरधर देश मझार !
“सागर” रतनू रे शक्ति,
आप लिवो अवतार !!
भई नवलाख भेऴीजी !!7!!
जागावत “धापू”-जननि,
उणरो तप्प अछेह !
जाय जनम लेवो जकां,
देवल री वह देह !!
भई नवलाख भेऴीजी !!8!!
शक चौसठ उगणीस सै,
साढ शुकल शुभ जान !
हुकुम लेय “हिंगऴाज” रो,
आवड प्रकटी आन !!
भई नवलाख भेऴीजी !!9!!
श्रैष्ठ महा-सुख सम्पदा,
विगसत कव्यां विशेष !
जागावत “हिंगऴाज” रै,
रक्षक मां इन्दरेश !!
भई नवलाख भेऴीजी !!10!!
जागावत हिंगऴाजदानजी चारणवास !!