इण कलजुग रे मांय अम्बिका कोई न साई जी आरत वाणी सुण खिड़यानी दौड़ी आई जी
इण कलजुग रे मांय अम्बिका कोई न साई जी
आरत वाणी सुण खिड़यानी दौड़ी आई जी
नरपत दान प्राण हरणे को जम जमदूत पैठाई
काल सामने महाकाल ज्यूँ माँ प्रकाश ने पाई ,
जीवन रो छिपियोड़ो सूरज अम्ब उगाई जी
आरत वाणी सुण खिडीयानी दौड़ी आई जी
चढ़ती फ़ौज संग में जीवण चारण करी चढ़ाई,
मौत आवती देख मावड़ी हेलो आप लगाई,
चक्र काल रो आप चारणी गजब घुमाई जी
आरत वाणी सुण खिड़याणी दौड़ी आई जी
भक्त एक केंसर री पीड़ा निज तन पर भुगताई,
और न देख आसरो जग में आप शरण रखवाई,
भैरूँ मतवाला ने भेजकर रोग मिटाई जी
आरत वाणी सुण खिडियाणी दौड़ी आई जी
रामचन्द जी चारण रा घर घोर निराशा छाई,
जिणरो छोटो सो ही झोंपड़ों एक दुष्ट जलवाई,
किरपा कर खिडियाणी उणरा महल बणाई जी
करणी री जी एक जातरा मांहि जींद घुस जाई,
पकड़ बांवड़ो खींच जींद स्यु माफी आप मंगाई,
रूप देख विकराल अम्ब जयकार लगाई जी
आरत वाणी…
एकरूप है शिव शक्ति रो सगत प्रकाश बताई,
सिमरण करत हरण संकट सब महादेव महामाई जी,
जगत अचंभित सगत कृपा शिव जल बरसाई जी
आरत वाणी सुण खिड़यानी
भव रा भेद वेद च्यारूं ही जगमाता जगराई जी,
माँ प्रकाश म्हारो ओ जीवन आप शरण भोलाई,
कुँवर विराज दास री रोटी अमर कराई जी
आरत वाणी सुण खिडियाणी दौड़ी आई जी