करती सभा जद करनला,जुगति जगत री जांचती
!! दुहा !!
कुळ रतनू उजल करण,वरियो नेक विचार,
करनल भगतां कारणे, इन्द्र रूप अवतार।।
!!छंद: सारसी!!
करती सभा जद करनला,जुगति जगत री जांचती,
आदेश देकर आवड़ा,भगवती मिलकर बांचती,
नवलाख मिल करती नियुक्ति,भगत हित भवतारिणी,
अवतार लिंयो मात इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
सिंधुसुता तन धार सांप्रत,प्रगटियाँ परमेशरी,
अर ईश्वरी सागर सदन आ,रतनु कुळ राजेश्वरी।
धापु उदर निरमळ धरी,हिंगलाज मां हितकारिणी,
आवड़ अनन्ता रूप इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
प्रथमि पसरिया देख पापी,धरा मरूधर धाविया
नर नरा मिटियो धरम नवखंड,अम्ब आतुर आविया।
चारण घरां कर चहलकदमी,सगत कारज सारणी,
आई मेहाई रूप इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
झट हट्ठ कर फठ्ठ पट जरा,नर बसन माँगण नीसरी,
पण वात नह मानी पितु,तव उदर पीड़ा ऊतरी,
मनवाय मरजी हेक पल मो,दरद अम्बा डाँटणी,
अद्भूत रूपा नमो इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
भगती करत नित भाव भर,करनल तणी करूणामयी,
दे नारियल खुद आय डोकर,मावड़ी ममतामयी,
परचा तणी चर्चा पढे, जन जन रदय जयकारिणी,
आवड़ अनन्ता रूप इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
गेढोपति अपमान करियो,गरब इंदर गालियो,
चंडी बणी नवलाख चीलां,चांच भर भर चाबियो,
ध्रुजवाय दी असमान धरती,चढ़ी केहर चारणी,
आदिसगत हिंगलाज इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
पांगळी ने बग्स पगळ्या,नोप घूमर नाचती,
आंधली ने देय आंख्या,कोढ़ भगतां काटती,
भगतां तणा दुख भांजती, शरणागति सुखकारिणी,
आवड़ अनन्ता रूप इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
कड़ड़ाट कर कम्पायती,अट्टहास करती आवती
धड़ धड़ड़ धड़ धर धुजती,हड़ हड़ड़ हड़हड़ हांसती,
सड़ड़ाट कर सूंसावती,मद महिष राखस मारणी,
नर भेष रूपा नमो इंदर,खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
चिरजा तणी रमझोळ चढ़ियां, सँवली बण नभ साजती,
झणकार छंदां री जठे,थूं बाघ पर चढ़ ब्राजती,
जगत सूं ठुकरावियो जो,ओ “विराज” अपनावणी,
आवड़ अनन्ता रूप इंदर, खुड़द मढ़ खमकारिणी।।
!!छप्पय!!
इन्द्र सगत्त अवतार,भावमय दीजे भगती
इन्द्र सगत्त अवतार, साद सुण दीजे सुमती,
इन्द्र सगत अवतार, दूर करजे दुरगत्ती
इन्द्र सगत अवतार, विकट थूं मेट विपत्ती।
चार चीज ऐ बगस दीजे,रोळीये मुख झूठ रो,
रीझियां हर जलम दीजिये,रगत मोय रजपूत रो।।
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रचना- कुँवर विराज शेखावत भडुन्दा छोटा
हाल- तारानगर(चूरू)