भवदुख रोग हरो मा भवानी,दयासिन्धु देशनोक री धिराणी
भवदुख रोग हरो मा भवानी,दयासिन्धु देशनोक री धिराणी
परजन पीड़ समझ निजजन सी,आप भई अकुलानी
परबस पैर भयो मा अम्बा,क्यो रुठया किनियानी||1||
लोवड़ तणी ओट रख लेसयू बचन दियो ब्राह्मणी
इण री ओट खोट दे खोड़ी क्यों किनी खिडियानी||2||
ऊंट तणो पग जोड़के आया ,के आ झूठ कहानी,
म्हारो पग सांझो करता माँ, आलस री अधिकानी||3||
अलवर नृप रे बिन भगति ही,माता पीड़ मिटाणी,
मैं थांरी भगती हित भागूं,भाण उगन्ता ताणी।।4||
चिरजा लिख गिरिजा आ चावूं,बिलकुल ना बैमानी,
पगां बिचाली ठीक कर पीड़ा,पीड़ा बिन प्रमाणि।।5||
बैद बनो अब आव भवानी,करो दवा किनियानी
अरज” प्रकाश कंवर बाई “री,सुणो तुरन्त शीवराणी।।6||