जो प्रकाश जपे उठता झुक
अन्नदाता श्री प्रकाश बाईसा रो
|| मतगयंद सवैया ||
जो प्रकाश जपे उठता झुक,माँ चरणां नित शीश निवावै |
दाळद दोष हरे विपदा दु:ख,मायड़ व्याधि विषाद मिटावै |
ज्ञान बढ़ावत मां घट भीतर,उत्तम मारग और चलावै |
माँ प्रकाश ही सहाय करे तब,काळ बिगाड़ कछु नही पावै ||
नाम भजे नित बाईसा रो,दो कर जोड़ घणे मन ध्यावै |
दौड़ के गोद लेवे सुत न मां,धार दया बहुत ही दुलरावै |
मात मनोरथ सारत दुर्लभ,बुद्धि विवेक अपार बढावै |
माँ प्रकाश ही सहाय करे तब काळ बिगाड़ कछु नही पावै ||
चक्र समे कछु चूक करें नह,शोखत दंश न श्राप सतावै |
ग्रह कु दोष रहे नित दूरन,पीर नहीं दुख आ पहुचावै |
भ्रम कु भूत दिसे खुद भाजत,दैत्य दशा न जँजाळ डरावै |
माँ प्रकाश ही सहाय करे तब काळ बिगाड़ कछु नही पावै ||
कान पुकार करें करूणानिधि,मात मुसीबत आय मिटावै |
पावन प्रीत हियेज उपावत,काळ करूर कु जाळ कटावै |
विघ्न हरे सब मां वरदायक, आंणद मां उर में उपजावै |
माँ प्रकाश ही सहाय करे तब,काळ बिगाड़ कछु नही पावै ||
शीश निवां नित बाईसा न,नाम सदां रसना हद लावै |
मात उमंग भरे जिण रे घर,सम्पत शान सदां सरसावै |
याद करन्त रहे नित हाजिर,कारज सिद्ध सदैव करावै |
माँ प्रकाश ही सहाय करे तब,काळ बिगाड़ कछु नही पावै ||
बीसहथी चलती सज वाहन,चट्टपटियां हद बाघ चलावै |
तेज त्रिशुल सजे कर खप्पर,दारुण दुष्टन मात डरावै |
भार उतारत भौम तणो मां,देखत दास दया दरसावै |
माँ प्रकाश ही सहाय करे तब,काळ बिगाड़ कछु नही पावै ||
देखत दीन दया कर दे मां,लज राख सदा मत मात लजावै |
क्यु अब देर करे करूणामयी,आरथ साभल क्यु नहीं आवै |
साय करो सुत की बाईसा,भैरव उपासक गोकुल ध्यावै |
माँ प्रकाश ही सहाय करे तब,काळ बिगाड़ कछु नही पावै ||
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रचना : प्रदीप सिंह कोट “गोकुल“