करणादे री गोदी में खेल करूँ छुंमाँ रे चरणा ध्यान धरूँ छुं

कुँवर विराज शेखावत कृत दयालु माँ श्री करणी जी की चिरजा-

               !!स्थाई!!
करणादे री गोदी में खेल करूँ छुं
 माँ रे चरणा ध्यान धरूँ छुं,
 मेहाई री गोदी------

                  !!अंतरा!!

सुखभर नींद सदाहि सोवूं, जगदम्ब जाप करूँ छुं,
हाथ स्यूँ थापि देय हेतभर,हंस हंस हेत करूँ छुं
मेहाई री गोदी में खेल करूँ छुं—

झंझट देख जगत रा झूठा,भय भर झेंप भरूँ छुं,
बांथ भरे छाती चिपकावे,करुणा टेर करूँ छुं
मेहाई री गोदी में खेल करूँ छुं—

रात दिवस मन मात रिझावू,करणी रा कोड करूँ छूँ,
माँ निज बाल देख मुस्कावे,जद जद पांव परूँ छुं,
करनादे री गोदी में खेल करूँ छूँ—

दिन उगता ही दुखड़ा देखण, जग में दौड़ करूँ छुं,
सांझ होवता ही सुरराया,चरणा तोय रमुं छुं,
करनादे री गोदी में खेल करूँ छूँ—

मुखड़ा पर दुखड़ा मंडरावे, तो, लोवड़ ओट लहु छुं,
उखड़ा उखड़ा रहे सब अपणा,तो, गिरिजा शरण गहू छुं
मेहाई री गोदी में खेल करूँ छुं—

लाड लड़े जद लाल धजाळी,भगती रा भाव भरूँ छुं,
खेल करूँ करणी रे क़दमां,आंख्यां नीर झरुं छुं,
मेहाई री गोदी में खेल करूँ छुं—

गोदी रा कितरा गुण गावूं,कीरत अनन्त करूँ छुं,
“कुँवर विराज” भजत किनियाणी, माँ री ओट रहूं छुं
मेहाई री गोदी में खेल करूँ छुं—

रचना- कुँवर विराज सिंह शेखावत
गांव- भडुंदा छोटा
हाल- जयपुर

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