अरज इन्द्रबाई सूं आखां जी !

!! चिरजा जवाहरदान जी रतनू कृत !!
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               भाषा व भाव दोनो ही पक्षों से समुज्वल चिरजा साहित्य के चितेरे जवाहरदान जी रतनूं थूंसङा की चावी चिरजा जो समाज मे मातृशक्ति द्वारा शक्तिपर्वो पर गाकर भगवती का स्तवन किया जाता है, इस चिरजा को कई ऐक चिरजा गायकों द्वारा भी गाया गया है !

           आज के समय मे इन उच्च आदर्शों एंवं भाषा बणगट की चिरजा वर्तमान के सृजनकारों ने बनाना ही छोङ दिया है, वैसे जवाहरदान जी ने अपनी रचनाओं में कुछेक जगह ही अपना नाम दिया है, अधिकतर रचनायें थाणा राजा रामसिंह के नाम ही समर्पित कर दी थी, यह रचना उन्होने अपने नाम से सृजित की थी !!

अरज इन्द्रबाई सूं आखां जी !
सूरज सोवीसां साखा जी !! टेर !!

के कमला के कामही,
सैणी के सुरराय !
भाग हमारे भगवती,
औरु प्रगटी आय !!1!!

नागणेच कै नीपज्या,
नो दुरगा थे न्याय !
बूंट किधू तूं बैचरा,
जोगण के जमवाय !!2!!

देवल आया दूसरा,
भोम उतारण भार !
कै थे लीनूं कर कृपा,
आवड़ जी अवतार !!3!!

गढ गोखां गिरनार सूं,
आया करण उबेल !
भलो रचायो भगवती,
खुड़द नगर बिच खेल !!4!!

आया छा थे आगरै,
कमधज पीथळ काज !
राजां की राजल रखी,
लोवड़वाळी लाज !!5!!

सेखो भाटी सिन्ध में,
कियो कैद किलमाण !
लागी जेजन लावतां,
बंणिया चील बिवाण !!6!!

सुरभी घेरी सांखले,
कांनी लोपी कार !
सज हाथळ महासदू,
बाघ थई तिण बार !!7!!

बै ब्रद मतना बीसरो,
देख कळू रा दौर !
अनदाता अब आसरों,
आप बिना नह और !!8!!

सुण हेला सागर-सदू,
आणी है तो आव !
त्यारै छै तो त्यार दे,
पड़ी भंवर बिच नाव !!9!!

गादड़ डोलै गाँव में,
सोवै न दिन में सेर !
याद कर्यों नहिं आवस्यो,
सरकै दिखण सुमेर !!10!!

ऊगे रवि आंथूंण मैं,
आभ पड़े घर आय !
धर पांणी भेळी धसै,
सक्त न करो सहाय !!11!!

हलवद में भैरव हुवै,
करता हद कैतूळ !
बेगा आज्यो बीसहथ,
सझ वाहन सादूळ !!12!!

कहणी छी सो कह लिई,
महिप न मानें मूऴ !
समजाद्यौ सागर-सदू,
झाझा सिंह लग झूल !!13!!

सुंभ-निसुंभा सोखणी,
घालत असुरां घात !
डरपी कांई डोकरी,
मुलक जांण मेवात !!14!!

बूढापा री बीनती,
म्हारी तो सूं मात !
समळादी सारी सरम,
अब धारै ही हाथ !!15!!

थिरू गांव मो थूंसड़ो,
जाहर नांव जुहार !
रहणूं अलवर राज में
आप तणो आधार !!16!!

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