भारत वर्ष सदैव विश्व का आध्यात्म गुरू रहा हैं। देश, देशान्तरों से दार्शनिक, संत और ज्ञान-पिपासु लोग निरन्तर सत्य की, ज्ञान की प्राप्ति की अभिलाषा लेकर भारत आते रहे हैं। भारत ज्ञानिनम् अग्रगण्यं देवताओं का देश हैं, देवानां प्रिय भूमि हैं। जीवन के चार पुरूषार्थों में धर्म का पलड़ा भारी रहा है। सामाजिक नियम और कानून धर्म को आधार मानकर ही बनाये गये हैं। हिन्दू धर्म में अवतारवाद की अवधारणा को अंगीकार किया गया हैं। हिन्दू धर्म में शिव, शक्ति और विष्णु के अवतारों की मान्यता हैं। भारत में विष्णु के 24, शिव के 11 और शक्ति के 84 अवतार माने गये हैं।

अवतारवाद :-

             अवतार का प्राकट्य (जन्म), कैसे, क्यों और किसलिए होता हैं ? इस विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय में 6-7-8-9 श्लोकों में स्पष्ट किया हैं।

प्राकट्य :-

श्लोक

अजो अपि सन्नव्ययात्मा, भूतानामीश्वरोऽपिसन्।

प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय, संभवाम्यात्मयायया ।।

       अर्थ : मेरा जन्म प्राकृत मनुष्यों के सदृश्य नहीं हैं। मैं अविनाशी स्वरूप, अजन्मा होने पर भी तथा सब भूत प्राणियों का ईश्वर होने पर भी अपनी प्रकृति आधीन करके योगमाया से प्रकट करता हूँ।

क्यों ?

श्लोक

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मानं सृज्याम्यहम् ।।

        अर्थ :- हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती हैं तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् प्रकट होता हूँ।

किसलिए ?

श्लोक

परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्म संस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे ।।

           अर्थ :- सत्पुरूषों का उद्धार और दूषित कर्मों का (बुराइयों का) नाश करने के लिए तथा धर्म की स्थापना करने के लिए युग-युग में प्रकट होता हूँ।

अलौकिकता ?

श्लोक

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवंयो वेत्ति तत्तवत : ।

       अर्थ :- इसलिए मेरा वह जन्म और कर्म दिव्य हैं, अलौकिक हैं। अवतार का जन्म होता हैं, यह स्पष्ट हो जाता हैं।

           जहाँ देवता असमर्थ हो गये, वहाँ देवी ने दुष्कर से दुष्कर कार्य को भी सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार महिषासुर ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर लिया कि वह किसी पुरूष के हाथों से नहीं मारा जा सकेगा। वरदान मिलते ही वह उद्ण्ड हो गया। उसने देवताओं को पराजित कर इन्द्रलोक पर भी अधिकार कर लिया। इस पर सब देवता विष्णु भगवान के पास पहुँचे। विष्णु भगवान के परामर्श पर सब देवताओं ने अपना-अपना तेज दिया। इससे अष्टभुजी दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ जिसके हाथों महिषासुर मारा गया, जिससे देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।

देवी :-

    देवी शब्द का आशय सामान्यतः विश्वव्यापी आदि शक्ति योगमाया से लिया जाता हैं, जो अत्यन्त प्रभावशालिनी मानी गई हैं। भंयकर संकट के समय देव और मानव दोनों इसकी शरण में गये हैं। पृथ्वी पर देवी के अनेक अवतार हुए हैं। ज्ञान, क्रिया एवं अर्थ की देवियाँ क्रमश: महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी हैं। दुर्गा को दुर्गति और दुर्भाग्य से बचाने वाली देवी कहा गया हैं। इतिहास काल से पूर्व भी देवी की मान्यता थी। हड़प्पा आदि की खुदाई में भी प्राप्त मातृ-देवी की मूर्तियों से यह सुज्ञात हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Discover more from KARA HATHAI

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading