SHREE KARNI VIRAT ROOP
विराज शेखावत कृत भगवती श्री करणी जी की स्तुति-
जगत पोषक जोगणी, सोखे सायर सात,
विश्व व्यापक बीसहथ,मोरी करणी मात।।
रवि रश्मि रथ रोकणी,गिरती बिजळी गाज,
लोवड़ माँ काळी लियां, हाजर थूं हिंगलाज।।
!!छन्द!!
धराय गंग चंद शीश शूल हाथ धारणी,
वरे विधी विधान वेद चौमुखी विराजणी,
चक्रधार शंखहाथ शेषनाग छाँवणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।१।।
जपे गिरीश चंद जाप भाण मो बिराजणी,
रमे सुरग्ग तोय पग्ग खग्ग राज राजणी,
परे विहग्ग नग्ग तोय रज्ज पिंड पावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।२।।
समंद सात द्वीप सात एक साथ सामणी,
अखंड अंधकार आंख खोलके उघाड़णी,
उतारती सुरज्ज सज्ज लोकमे उगावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।३।।
प्रकाशणी प्रमार्थ आर्तनाद थूं पुकारणी,
कराय स्वार्थ साद कोय कोप थूं करावणी,
सराय सब्ब काज अब्ब सिंह नूं सजावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।४।।
परम्म तत्व सत्त रज्ज तामसीक पूरणी,
धरम्म कर्म योग वेद सार गीत दूगणी,
पुराण माय राम कृष्ण रूप थूं पुजावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।५।।
जचावणी जगत्त सत्त संत णो जगावणी,
भगत्त रोग दोष शोक भोग नो भगावणी,
रचावणी सुराज राज रूसिया रुळावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।६।।
धरे कपाल खड्ग डार मुंड माळ डारणी,
डरन्त देव देख रूप काळ णो विडारणी,
चरन्त देत चंड देख सिंह मात चाडणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।७।।
समन्द बीच झूलती जहाज बाणिये तणी,
दुहन्त गाय एक हाथ डोकरी बणी धणी,
लगी बढ़ाण हाथ मात पार नांव लावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।८।।
धरा बिकाण जोधपूर रीझियां दिरावणी,
कराय रीस मात कान खीजियां खपावणी,
बसा तिलोक निज्ज मड्ढ बीच मो बिराजणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।९।।
करोड़ देव हाथ जोड़ हाजरी खड़े करे,
बड़े बिरक्ख बेरड़ी पयोधि नीर सो वरे,
खड़े अनन्त खेजड़ी चहूंदिशा ख़िळावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।१०।।
उरग्ग कालकूट तात पग्ग रो उतारणी,
उदावते चढो गरल्ल मौत सूं उबारणी,
चढ़ी गगन्न वेग चील शेख नूं छुड़ावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।११।।
समंद शोख हाकड़ो चलू भराय मोवड़ी,
लुपाय लाज काछबो लुकाय मात लोवड़ी,
विराट रूप बूट देख मूक हो बिचारणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।१२।।
धुजे धरा तिलोक जम्म काज खोटियो करी,
डरे त्रिदेव देवलोक देख रीस डोकरी,
लखन्न जाय जीवतो विधी मरोड़ लावणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।१३।।
अपार रूप आवड़ा अनन्त ख्यात आपणी,
हटावणी निराश वात पांच दोष हारणी,
विशेष देय आसरो ” विराज” री विचारणी,
नमो धिराण देशनोक सात भाण चारणी।।१४।।
!! छप्पय !!
परमेश्वरी प्रसार,पार थारो नह पावे,
शक्ति रो संचार,जगत हर कोणे जावे,
नक्षत्र ग्रह नोय, बीच ब्रह्मांड बसावे,
तारा वाळी तोय,आरती देव जचावे,
निजर पसार नवखण्ड धणी,डोकरी दुख डाटजे,
केहर होय सवार करणी,आफत मांहि आवजे।।
रचना- विराज शेखावत भडुन्दा छोटा
हाल तारानगर(चूरू)