कर दृग कोर कृपा री !लज्जा मौरी राखौजी मेह दुलारी !!
!! कर दृग कोर कृपारी !!
!!लज्जा मोरी राखो मेह दुलारी !!
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मानदानजी कविया दीपपुरा सीकर माँ भगवती भवानी का अनन्य उपासक और चिरजा सृजन का सिध्दहस्थ साधक, ऐक सूं ऐक बेजोङ रचनांवां बणाई जो कि आज भी समाज मे गाई व सुनी जाती है, मानदानजी की तीन पीढीयों पर बराबर सरस्वति की कृपा चलती आ रही है, अब वर्तमान समय में उनके पौत्र श्रीपालजी व विशालजी चिरजा गायन के सिध्दहस्थ कलाकार हैं !!
कर दृग कोर कृपा री !
लज्जा मौरी राखौजी मेह दुलारी !!
करनल नाम शकत किनीयांणी,
थळवट धांम तिहारी !
बाजे सदा वरण की बाहरू,
सझ नाहर असवारी !!
कवि प्रहलाद कुरन्द हिरणाकुश,
धार्यां हाथ दुधारी !
लेबा शरण दुष्ट ललकारे,
नृसिंह रूप निहारी !!2!!
विकल भयो मैं दीन विभीषण,
दस सिर भीड़ दबारी !
राम सरूप होय कर रक्षा,
थिर शरणागत थारी !!3!!
मैं गजराज दरिद्र मगरमच्छ,
पकङ्यौ तांत पसारी !
डूबत बैर आव डादयाळी,
हरि गत मदद हमारी !!4!!
जग जननी परचा जग जाहर,
बै मत बिरद बिसारी,
करूणा करत “मान” कर जोङ्यां
नासत समय निहारी !!5!!