धजाबन्द बोलत खुरद धिराणी,इन्द्र माँ हंस-हंस अमृत वाणी

!! धजाबन्द बोलत खुरद धिराणी !!
!! इन्द्र माँ हंस हंस अमृत बाणी !!
!! हिंगऴाजदानजी जागावत रचित !!
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!! दोहा !!

मन चाहत है मिलन को,
दरशण को दुय नैन !
श्रवण चहत है सुनन को,
आपहि के शुभ बैन !!

नैणा निरखूं आप पद,
श्रवणां सुणू सु बैन !
अम्बैजी जद आवसी,
मो मन मिलसी चैन !!

मुख चाहत तब नाम ल्यू,
श्रवण चहत सुण बैण !
कर चाहत पद परसबो,
निरखन चाहत नैण !!

*!! चिरजा !!

धजाबन्द बोलत खुरद धिराणी,
इन्द्र माँ हंस-हंस अमृत वाणी !! टेर !!

भवन देव वृक्षरै ब्राजत,
अमरपुरी सिद्धी आणी !
सिंहासण ब्राजण को सुंदर,
भ्रत नह सकत बखाणी !!1!!

बोतल स्वच्छ भरयोड़ी बारूणी,
महंगे मोल मंगाणी !
चित्त में मात खुशी हुय चाहत,
शिशु निज ते पुरसाणी !!2!!

मद पीवत अम्बा उर मानै,
चिरजा दिव्य चलाणी !
आदि सक्ति अवतार अम्बै रो,
विधि विधि भेद बताणी !!3!!

करनल मात तणी जो कीरति,
ऊँचै ग्राम गवाणी !
भ्रत्य गति राग तणी भू लेते,
मुख निज सूं फरमांणी !!4!!

चित्त “हिंगळाजदान” थिर चावै,
समय यही सुरराणी !
सह सेवक सांचै चित्त समझो,
माऊ रूप मृडाणी !!5!!

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